पं. पू. संत श्री गुरुदेव बाबाजी

संत श्री श्री 1008 सद्गुरु ईश्वरदत्तजी महाराज

॥ गुरु ॐ ॥

परम संत सद्गुरुदेव श्री ईश्वरदत्तजी ब्रह्मचारी

जीवन परिचय

आपका जन्म १८ जुलाई १९२३ गुजरात, बड़ौदा के पास वासद में नांदेरा ब्राह्मण परिवार में हुआ। आपके पिता श्री शिवशंकर पाठक एवं माता प्रसन्न बा चुस्त सनातनी ब्राह्मण थे । अयाचक वृत्ति से अपने परिवार का भरण-पोषण करना तथा सतत भगवद्भजन करना परिवार का लक्ष रहा है। आपके अन्य तीन भाई श्री भाईलाल भाई, स्व. रमणभाई, एवं स्व. डाह्याभाई, भी कठोर तपस्वी तथा देवी उपासक रहे हैं। बचपन से ही अपने परिवार के भक्तिमय वातावरण से आपके अन्दर आध्यात्मिक संस्कारों का प्रादुर्भाव हुआ। आपको कई संतों के दर्शन सत्संग एवं मार्गदर्शन का लाभ मिल चुका है। परम सद्गुरु श्री गिरजाशंकर महाराज से आपको गायत्री दीक्षा प्राप्त हुई। उन्हीं के मार्गदर्शन में आपने वासद में चौबीस लाख का गायत्री पुरश्चरण लगभग २०-२५ वर्षकी अवस्था में पूर्ण किया । अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में भी आप अपने साधन भजन से विचलित नहीं हुए । आपने उन्हीं दिनों पेरिनबहन ( गिरजाशंकर महाराजकी समर्पित भक्त) का भी सत्संग लाभ लिया । इसके अतिरिक्त बचपन से ही आप बड़ौदा में बंगाली संत, परमयोगी दंडी संन्यासी श्री शांता स्वरूपजी (मगर स्वामी) के सान्निध्य में उन्हीं के सारसिया स्थित आश्रम में कई वर्षों तक रहे तथा साधन भजन करते रहे तथा उन्हीं से योग दीक्षा ली।

दत्तस्वरूप दंडी संन्यासी परम पूज्य वासुदेवानंद सरस्वती (गरुडेश्वर) भी आपके आराध्य संत रहे। उनका परोक्ष आशीर्वाद आपको प्राप्त है। उन्हीं के शिष्य नारेश्वर संत श्री रंग अवधूत की पूर्ण कृपादृष्टि आपके ऊपर रही। उन्हीं के आदेश से आपने अपना घर द्वार छोड़ा तथा घरमराय (वर्तमान आश्रम) को अपनी तपस्थली बनाया और आजतक यही पर स्थित हैं।

इसके अतिरिक्त संत श्री पुनित महाराज एवं एक अन्य अवधूत संत जिन्हें लोग छत्रपति के नाम से जानते थे उनका भी सत्संग एवं आशीर्वाद का लाभ लिया।

सन् १९५६में आपने नर्मदा परिक्रमा पूर्ण की पश्चात् सन् १९६२ से आप अपनी नारायण कुटी धरमराय तेह. कुक्षी म. प्र. में सतत साधना में लीन हैं। आपके मार्ग दर्शन में आश्रम में समय-समय पर विभिन्न धार्मिक गतिविधियों का आयोजन होता रहता है। जिससे क्षेत्र की जनता में एक आध्यात्मिक प्रवाह बना हुआ है।

सन् १९९० बड़केश्वर (बाग) में (आठ दिवस) आपने अतिरुद्र महा यज्ञ का सफल आयोजन किया। जिसमें लगभग दो लाख लोगों ने दर्शन एवं भोजन का लाभ लिया। बाद में बचत राशि से बड़केश्वर में धर्मशाला का निर्माण करवाया गया।

इसी प्रकार सन् १९९४ में घरमराय में महा विष्णुयाग (यज्ञ) का (आठ दिवसका) आयोजन किया तथा क्षेत्र की जनता को धार्मिक प्रवाह से ओतप्रोत कर दिया। इन दोनों महायज्ञों की विशेषता यह थी कि इसमें क्षेत्र की गरीब आदिवासी जनता ने जी जान से सहयोग किया। इन दोनों महा यज्ञों का खर्च लगभग अठारह लाख हुआ ।

वर्तमान में भी नित्य कई श्रद्धालु भक्त आश्राममें आकर दर्शन एवं सत्संग का लाभ ले रहे हैं।

संत श्री श्री 1008 सद्गुरु ईश्वरदत्तजी महाराज

गुरुदेव की दुर्लभ फोटो

गुरुदेव की दुर्लभ फोटो