अपना नया आश्रम: नारायण कुटी का प्रस्तावित स्वरूप

यह आपके सामने हमारे पूज्य गुरुदेव सद्गुरु ईश्वरदत्तजी ब्रह्मचारी के आशीर्वाद से निर्मित हो रहे नए नारायण कुटी आश्रम का प्रस्तावित नक़्शा है। जैसा कि आप जानते हैं, हमारा पुराना आश्रम माँ नर्मदा के डूब क्षेत्र में आ गया था, इसलिए हम गुरुदेव की पावन परंपरा को जारी रखने के लिए इस नए आध्यात्मिक केंद्र का निर्माण कर रहे हैं।

यह नक़्शा आश्रम के भविष्य की एक झलक प्रस्तुत करता है – एक ऐसा स्थान जहाँ शांति, साधना और सेवा का समन्वय होगा। यहाँ गुरुदेव के भक्तगण एकत्रित हो सकेंगे, आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे, और माँ नर्मदा की दिव्यता का अनुभव कर सकेंगे।

हमारा लक्ष्य एक ऐसा आश्रम बनाना है जो न केवल भौतिक रूप से विशाल हो, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी समृद्ध हो और आने वाली पीढ़ियों को गुरुदेव के दिखाए मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करे। आपके सहयोग से, यह स्वप्न शीघ्र ही साकार होगा।

अपना आश्रम: नारायण कुटी, धरमराय

॥ गुरु ॐ ॥

धार जिले की पावन भूमि पर, माँ नर्मदा के समीप, ग्राम धरमराय(तहसील व जिला धार, पिनकोड 454331) में स्थित है हमारा शांत और दिव्य आश्रम "नारायण कुटी"। यह परम पूज्य सद्गुरुदेव श्री ईश्वरदत्तजी ब्रह्मचारी की तपोभूमि है, जहाँ उन्होंने वर्षों तक साधना की और आज भी उनकी ऊर्जा और आशीर्वाद हर कण में महसूस होता है।

नवीन आश्रम का निर्माण

पूज्य सद्गुरुदेव का पूर्व आश्रम, जो सीधे माँ नर्मदा के किनारे स्थित था, दुर्भाग्यवश डूब क्षेत्र में आ जाने के कारण अब जलमग्न हो चुका है। गुरुदेव के संकल्प और भक्तों की श्रद्धा को साकार करते हुए, हमने उसी पावन भूमि के पास, ऊँचाई पर नए आश्रम "नारायण कुटी" का निर्माण कार्य लगभग पूर्ण कर लिया है। यह नया आश्रम गुरुदेव की शिक्षाओं और जनकल्याण के कार्यों को आगे बढ़ाने का केंद्र बनेगा।

गुरुदेव की तपोस्थली

परमसंत सद्गुरुदेव श्री ईश्वरदत्तजी ब्रह्मचारी का जन्म 18 जुलाई 1923 को गुजरात के वासद में हुआ था। बचपन से ही भक्तिमय वातावरण में पले-बढ़े गुरुदेव ने कई संतों का सानिध्य प्राप्त किया। परम सद्गुरु श्री गिरजाशंकर महाराज से गायत्री दीक्षा लेकर उन्होंने वासद में 24 लाख गायत्री पुरश्चरण पूर्ण किया। बाद में, परमयोगी दंडी संन्यासी श्री शांता स्वरूपजी (मगर स्वामी) के सान्निध्य में योग दीक्षा ली।

सन् 1956 में नर्मदा परिक्रमा पूर्ण करने के पश्चात्, नारेश्वर संत श्री रंग अवधूतजी के आदेश से, गुरुदेव ने अपना घर-द्वार छोड़कर धर्मराय को अपनी तपस्थली बनाया। सन् 1962 से आप अपनी नारायण कुटी, धर्मराय में सतत साधना में लीन रहे और यहीं से क्षेत्र की जनता में एक आध्यात्मिक प्रवाह बनाए रखा।

गुरुदेव ने जनकल्याण के लिए कई बड़े आयोजन भी किए, जिनमें सन् 1990 में बड़केश्वर (बाग) में अतिरुद्र महायज्ञ और सन् 1994 में धर्मराय में महा विष्णुयाग प्रमुख हैं। इन यज्ञों में गरीब आदिवासी जनता ने भी उत्साह से सहयोग किया, जो गुरुदेव के प्रभाव का प्रमाण है।

हमें विश्वास है कि आप यहाँ आकर आंतरिक शांति और सुकून का अनुभव करेंगे। यह भीड़-भाड़ से दूर, आत्म-चिंतन और साधना के लिए एक आदर्श स्थान है, जहाँ हर पल गुरुदेव का आशीर्वाद महसूस होता है।

आप यहाँ आकर कुछ पल बिताएं और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करें।